सूर्या सप्तमी महोत्सव
सम्पूर्ण भारतवर्ष में माघ माह की प्रथम सप्तमी को यह पर्व मनाया जाता है । इस दिन भगवन भास्कर एवं अन्य देवी देवताओ की झाकियां निकाली जाती है । भगवान् भास्कर का हवं किया जाता है । युवा वर्ग पूरे उल्लास के साथ डांडिया खेलते है और अन्य सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है ।
सूर्य सप्तमी क्यों मनाते है ?
भगवन श्री कृष्ण के पुत्र शाम्भ को अपने सौंदर्य पर बहुत घमंड था इसलिए उसका घमंड भंग करने हेतु भगवन श्री कृष्ण ने उसे कुष्ठ रोग का श्राप दिया । क्षमा याचना करने पर नारद जी ने उसे उपाय बताया कि तुम जगन्नाथ पूरी के पास चन्द्र भागा नदी के किनारे जाकर भगवन सूर्य कि उपासना करो तब तुम्हे इस श्राप से मुक्ति मिलेगी । उसके बाद शाम्भ ने वहां जाकर नारद जी के बताये अनुसार सूर्य की उपासना की । सूर्य देव प्रसन्न होकर शाम्भ के स्वप्न में आये और कहा कि कल नहीं में तुम्हे एक तैरती हुई सूर्य प्रतिमा मिलेगी, उसे तुम निकाल लेना, आगे का कार्य मैं तुम्हे स्वप्न में आके बताता रहूँगा । इसके बाद शाम्भ ने नदी में से सूर्य कि प्रतिमा प्राप्त की । इस प्रतिमा कि प्राण प्रतिष्ठा हेतु भगवान् श्री कृष्ण से आज्ञा लेकर उनके गरुड़ द्वारा शाकद्वीपीय नामक टापू से सभी मुनियों को बुलाया गया । जिस दिन प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हुई वह दिन माघ सुदी सप्तमी थी । तब से प्रत्येक वर्ष इस सप्तमी को "सूर्य सप्तमी" के रूप में मनाया जाता है ।
खेलनी सप्तमी महोत्सव
सम्पूर्ण भारतवर्ष में फाल्गुन माह की सप्तमी को यह पर्व मनाया जाता है । वास्तव में यहाँ पर्व शाकद्वीपीय समाज द्वारा होली के पर्व का आगाज़ है । इस दिन समस्त सामाजिक बन्धु श्री नागानेची माता जी के मंदी में दर्शन एवं भजन के लिए एकत्रित होते है । देवी नागानेची को बोरला, चांदी का तोरण और पंचरंगी साड़ियाँ पहना कर विशेष श्रृंगार किया जाता है । फिर मंदिर प्रांगण में भक्ति और पारंपरिक गीतों का अनवरत दौर चलता है । जिसमे गणेश वंदना के बाद "हंस चढ़ी भवानी", "मात भवानी जागे" एवं "तुर्र्रे आली माता ए" के बाद हडाऊ मेरी कि रम्मत एवं लुप्त होते पारंपरिक गीतों कीप्रमुखता रहती है । भजन के बाद शहर में विभिन्न स्थानों पर गोठ और भोज का आयोजन किया जाता है । गोठ के बाद लोग गोगागेट से गैर के रूप में विभिन्न मोहल्लों से होते हुए मुन्धाड़ा सेवागों के चौक में पहुँच कर गैर का समापन करते है ।
पौष बड़ा
राजस्थान के जयपुर शरार में पौष माह में यहाँ पर्व मनाया जाता है । इस दिन शाकद्वीपीय समाज के सभी बन्धु एकत्र होकर सामाजिक गतिविधियों एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते है । इस दिन भोज का भी आयोजन किया जाता है जहाँ भोज के दौरान सामाजिक विषयो पर भी चर्चा होती है । समस्त समाज को एक सूत्र में बांधने का जयपुर समाज का यह प्रयास सराहनीय एवं सामाजिक एकता का प्रतीक है ।
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